माहेश्वरी, बस नाम ही काफी है !


3133 ईसा पूर्व में अर्थात द्वापर युग के उत्तरार्ध में, महाभारतकाल में देवाधिदेव महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) के वरदान से माहेश्वरी वंश (माहेश्वरी समाज) की उत्पत्ति हुई. इसे ठीक से समझे तो कलियुग के ठीक पहले माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है. मित्रों, कलियुग अनीति, अनाचार, अन्याय की प्रधानतावाला अर्थात अधर्म की प्रधानतावाला युग माना जाता है. चराचर जगत के निर्माणकर्ता, पालनहार और संहारकर्ता भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा घोर अनाचार और अनीतिवाले कलियुग में धर्म की हानि रोकने के लिए, अधर्म के कारन होनेवाले विश्व के विनाश को बचाने के लिये दैवीय अर्थात महा ईश्वरी (माहेश्वरी) वंश की उत्पत्ति की गई है; सदाचारी, न्यायपूर्ण, नीतिपूर्ण जीवन जीने का आदर्श लोगों के सामने रहे इसीलिए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति की गई है. लोगों के सामने एक आदर्श और धर्माधिष्ठित जीवनपद्धति को रखने के लिए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है.

माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय भगवान महेशजी ने कहा था की- "तुम दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होंगे. द्यूत, मद्यपान और परस्त्रीगमन इन त्रिदोषों से मुक्त होंगे. जगत में धन-सम्पदा के धनि के रूप में तुम्हारी पहचान होगी. धनि और दानी के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी. श्रेष्ठ कहलावोगे" (*आगे चलकर श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर 'सेठ' कहा जाने लगा. अर्थात अधिक धन-सम्पदा के स्वामी होने के कारन नहीं बल्कि इन दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होने के कारन माहेश्वरीयों को श्रेष्ठ/सेठ कहा जाता है). भगवान महेशजी का माहेश्वरी समाज को, माहेश्वरीयों को दिया गया यह वरदान और आदेश भी है की माहेश्वरी द्यूत अर्थात किसी भी तरह के जुआ/जुगार खेलने से, मद्यपान अर्थात किसी भी तरह के नशीले पदार्थ के सेवन से और परस्त्रीगमन से मुक्त रहेंगे, वे इन तीन दोषों (बुराइयों) में लिप्त नहीं होंगे. इसी के कारन 'माहेश्वरी' दिव्य गुणों को धारण करनेवाले कहलाते है, माहेश्वरी (महा+ईश्वरी) अर्थात दैवीय/दिव्य कहलाते है, श्रेष्ठ कहलाते है. कलियुग में माहेश्वरीयों को 'श्रेष्ठ' माना जाता है, श्रेष्ठ (सेठ) कहा जाता है (देखें- Maheshwari - Origin and brief History). आज के समय में ज्यादातर समाजबंधुओं को, युवाओं को, नई पीढ़ी को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कब हुई, कहाँ हुई, कैसे हुई, क्यों हुई, तब क्या क्या हुवा इसकी तथा माहेश्वरी समाज के इतिहास की समुचित जानकारी ही नहीं है; परिणामतः उन्हें हम माहेश्वरीयों की उत्पत्ति किस महान उद्द्येश्य से हुई है इसका बोध ही नहीं है. हमें लगता है की "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास" की जानकारी समाज के हरएक घटक तक पहुँचाने के लिए माहेश्वरी समाज के लिए कार्य करनेवाले संगठनों को कोई प्रचार अभियान चलाना चाहिए. सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समय समयपर इसको समाज के सामने रखा जाना चाहिए.

भगवान् महेशजी द्वारा हम माहेश्वरीयों को, माहेश्वरी समाज को सौपा गया यह एक बहुत ही गौरवपूर्ण दायित्व है. लेकिन आज हम हमारे इस गौरव को, हमारे दायित्व को, हमारी महत्ता को भूलते जा रहे है. आज स्थिति ऐसी बनती जा रही है की- एक ज़माने में आम लोगबाग माहेश्वरी समाज का, उनके जीवनपद्धति का आदर्श सामने रखकर, प्रेरणा लेकर अपने खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार-व्यवहार और जीवनपद्धति में बदलाव लाते थे. आम लोगबाग माहेश्वरीयों जैसे जीवन जीने की कोशिश करते थे लेकिन आज इसका उलटा होता दिखाई दे रहा है. हमें लगता है समाज को, समाज में के बुद्धिजीवियों को, प्रबुद्ध समाजबंधुओं को, समाज के सामाजिक नेतृत्व को, हम सबको इसपर जरूर सोचना चाहिए, गंभीरता से सोचना चाहिए. हम सभी को इस बात को सदैव याद रखना चाहिए की भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति किस उद्देश्य से हुई थी. क्या हम हमें मिले उस अद्वितीय गौरव को कायम रख पा रहे है? भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा हमें मिले दायित्व को निभा रहे है? मित्रों, समाजबंधुओं, माताओ और बहनो, ध्यान रहे की "माहेश्वरी" सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक ब्रांड है; और समाज का हरएक व्यक्ति, हरएक माहेश्वरी इस ब्रांड का "ब्रांड एम्बेसडर" है.

माहेश्वरीयों के अच्छे "संस्कार" ही माहेश्वरीयों को महान बनाते है, जीवन में सर्वोच्च सफलता दिलाते है। अच्छे संस्कारों, अच्छे गुणों को धारण करनेवाले होने के कारन ही माहेश्वरीयों को श्रेष्ठ (सेठ) कहा जाता है। "माहेश्वरी" सिर्फ एक शब्द या नाम नहीं है बल्कि सदाचार का, सेवा का, उदारता का, ईमानदारी का, मेहनत का, विश्वसनीयता का एक प्रतिष्ठित "ब्रांड" है, सिम्बॉल है।




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