मित्रों, कुछ दिनों पहले माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी से हुई बातचीत में उन्होंने ये पंक्तियाँ कहते हुए, इसका कारन बताते हुए कहा की- पान इसलिए सड़ गया क्योंकि उसे बदला नहीं गया और घोडा इसलिए अड़ा क्योंकि उसपर लगाम नहीं लगायी गयी, रोटी इसलिए जल गयी क्योंकि उसे पलटा नहीं गया... उर्दू शायर, ग़ालिब और खुसरो द्वारा कही इन पंक्तियों में आगे एक और कड़ी को जोड़ते हुए उन्होंने कहा की- माहेश्वरी समाज की प्रगति क्यों रुकी? क्यों माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान ख़त्म होती जा रही है? क्योंकि, बीते 100 वर्षों से समाज के नेतृत्व को बदला नहीं गया. 100 वर्षों से निरंतर एक ही संस्था द्वारा माहेश्वरी समाज का नेतृत्व किया जा रहा है इसके कारन ! कितना प्रासंगिक है उनका ये कहना, आइये समझते है...
राष्ट्र हो या कोई समाज या संप्रदाय, पांच दस वर्षों के बाद, नेतृत्व को पलटना चाहिए, सरकारे बदलनी चाहिए और उनपे लगाम लगायी जानी चाहिए... नहीं तो वे बेकार, निष्क्रिय हो जाएंगी तथा उन्हें सत्ता का, अहंकार का नशा हो जायेगा. इसलिए समय समयपर नेतृत्व में परिवर्तन होना आवश्यक है. कोई राष्ट्र हो या कोई समाज ये उनके हित में बहुत लाभकारी है की हर पांच दस वर्षो में नेतृत्व हस्तानांतरित होता रहे. नेतृत्व में परिवर्तन होता रहे यही प्रगति का मूलमंत्र है, यही समाज के हित में है.
हम माहेश्वरी समाज की ही बात करें तो बीते 100 वर्षों से भी ज्यादा समय से माहेश्वरी समाज का नेतृत्व 'माहेश्वरी महासभा' यह संगठन कर रहा है. जैसा की ऊपर कहा गया है की "हर पांच दस वर्षों में नेतृत्व बदलना चाहिए, नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए... नहीं तो वे बेकार, निष्क्रिय हो जाते है तथा उन्हें सत्ता का, अहंकार का नशा हो जाता है, नेतृत्व करते हुए आम लोगों के लिए उनकी जो जिम्मेदारियां होती है वे उसे भूल जाते है, आम लोगों से उनका जुड़ाव और संपर्क समाप्त हो जाता है" बिलकुल यही स्थिति माहेश्वरी महासभा की हो गई है. आज वास्तविक स्थिति यह है की- माहेश्वरी महासभा यह संगठन समस्त माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करता है यह बात किसी तत्थ्य, प्रमाण, तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है. साबित हो गया है की माहेश्वरी महासभा द्वारा माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करने का सिर्फ दिखावा किया जा रहा है. इस दिखावे के नेतृत्व के चलते समाज में एक अराजक जैसी स्थिति बन गई है, समाज में कोई किसी की नहीं सुन रहा है, प्रगति रुक गई है, समाज हरएक क्षेत्र में पिछड़ गया है. समाज शक्तिहीन हो गया है. माहेश्वरी महासभा के कई जिला-तहसील स्तर के पदाधिकारियों ने व्यक्तिगत बातचीत में इसे माना है की वे भले ही खुद को जिले या तहसील के माहेश्वरी समाज का नेता कहते है लेकिन उनकी कही बात को पूरा समाज तो क्या एक-चौथाई समाज भी नहीं मानता है, नहीं मानेगा. इसे ही अराजक वाली स्थिति कहते है. ऐसी स्थिति में किसी भी समाज में ना एकता बन पाती है ना वह समाज प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है. उसकी प्रगति रुक जाती है, गौरव समाप्त हो जाता है. आज माहेश्वरी महासभा के नेतृत्व में, पुरे देशभर के माहेश्वरी समाज में लगभग ऐसी ही स्थिति है इसे कौन नकार सकता है. सोचो यदि हमारे देश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता तो कैसे कांग्रेस जाती और कैसे देश को मोदी जैसा सक्रीय, दूरदर्शी नेतृत्व मिलता जो दुनियाभर में देश के गौरव को पुनर्स्थापित कर रहा है, जिसने देश के गौरव को बढ़ाया है, प्रगति को रफ़्तार दी है, जिसके नेतृत्व में देशवासियों के मन में अपने देश के लिए स्वाभिमान जगा है. इसलिए समाजजनों को, समाज के लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए की समय समयपर, हर पांच दस वर्षो में नेतृत्व हस्तानांतरित होता रहे, नेतृत्व में परिवर्तन होता रहे यही प्रगति का मूलमंत्र है, यही समाज के हित में है.
समाज के लिए अपना समस्त जीवन समर्पित कर देनेवाले योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज के मार्गदर्शन में समाज को वास्तविक नेतृत्व देने के लिए एक पहल हुई. समाज के लिए, नेतृत्व के लिए एक सुव्यवस्थित और सर्वसमावेशक व्यवस्था (सिस्टम) को प्रस्तुत करते हुए महासंघ कार्यरत हुवा, सक्रीय हुवा. "माहेश्वरी महासंघ" की सक्रियता के कारन बीते कुछ दिनों में समाज के नेतृत्व को लेकर, संगठनों के कामों को लेकर समस्त माहेश्वरी समाज में जोरशोर से चर्चाएं की जा रही है. सोशल मिडिया के माध्यम से शुरू हुई यह चर्चा आज समाजबंधुओं के ड्रॉइंगरूम में, इतनाही नहीं जहाँ समाज के चार लोग इकठ्ठा हो जाते है वहां पर भी, समाज के समारोहों में भी होती दिखाई दे रही है. इससे माहेश्वरी महासभा में भी उथल-पुथल मची हुई है.
बीते 100 सालों से समाज का जो नेतृत्व महासभा के हाथों में है कही वह हाथ से निकल न जाये इसके लिए महासभा भीतर ही भीतर सक्रीय हुई है. समाज से उठे सवालों पर महासभा सार्वजनिक रूप से कोई आधिकारिक उत्तर तो नहीं दे पा रही है लेकिन अपने संगठन के पदाधिकारियों के नेटवर्क के माध्यम से समाज में बेबुनियाद अफवाहें, और समाज को कन्फ्यूज करनेवाली बातें फ़ैलाने का सिलसिला महासभा ने शुरू कर दिया है. महासभा द्वारा कही जा रही बातों में समाज को यह डर बताया जा रहा है की महासभा का नेतृत्व नहीं रहेगा तो समाज एकदम से नेतृत्वहीन हो जायेगा, फिर समाज का क्या होगा? इसपर हम कहना चाहते है की एक सामान्य भौतिकी नियम है की खालीपन या रिक्तता कभी भी नहीं रहती है, निश्चित रूप से समाज इतना सक्षम और समझदार है की बहुत कम समय में समाज के लिए सक्षम नेतृत्व का निर्माण समाज स्वयं कर लेगा, माहेश्वरी महासंघ ने समस्त माहेश्वरी समाज के नेतृत्व के लिए समाज के सामने खुद को एक सक्षम विकल्प/पर्याय के रूप में रखा भी है. महासभा समाज को नेतृत्वहीनता होने का डर दिखाकर डराए नहीं. बल्कि इसके बजाय महासभा उनके अपने नेतृत्व को महासंघ से बेहतर सिद्ध करने के लिए समाज के सामने (देशभर में) महासभा और महासंघ को अपनी अपनी बात रखने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करें. समाज महासभा और महासंघ दोनों की ही बात को सुनेगा और फैसला करेगा की समाज का नेतृत्व करने के लिए बेहतर कौन है, 'महासभा या महासंघ' किसके नेतृत्व में समाज प्रगति कर सकता है, किसके नेतृत्व में समाज का गौरव बढ़ेगा. महासभा ऐसे चर्चात्मक कार्यक्रमों को आयोजित करें और फिर समाज तय करें की क्या करना है. हालाँकि महासभा की नाकामयाबी खुलने के डर से, महासभा ने फुलाया हुवा भ्रम का गुब्बारा फूटने के डर से महासभा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करेगी इसकी संभावना कम ही है. समाज के सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये इसलिए महासभा को (महासभा को इसलिए चूँकि वह आज/वर्तमान समय में समस्त माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करने का दावा करती है) महासभा और महासंघ की आमने सामने की चर्चा के कार्यक्रम आयोजित करने की पहल करनी चाहिए; लेकिन इसकी संभावना कम ही है की महासभा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें. हरएक शहर में स्वतंत्ररूप से कार्य करनेवाले स्थानीय माहेश्वरी संघठन भी है लेकिन महासभा के दबाव के कारन उनसे भी यह संभावना कम है की वे ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे. समाज के लिए समर्पित (किसी एक संगठन के लिए नहीं) एक समाचारपत्रिका होने के नाते हमें लगता है की महासभा और महासंघ इन दोनों को समाज के सामने अपनी अपनी बातें, अपनी अपनी भूमिका रखने का मौका मिलना चाहिए. जो गलत होगा समाज उसे नकार देगा, जो सही होगा समाज उसको समाज का नेतृत्व देगा; यही समाज के हित में है; बाकी समाज ना सिर्फ सब कुछ करने में समर्थ है, सक्षम है बल्कि सर्वोपरि भी है.
जय महेश !
बात तो सही है।आमने सामने चर्चा होनी चाहिये।
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