माहेश्वरी, बस नाम ही काफी है !


3133 ईसा पूर्व में अर्थात द्वापर युग के उत्तरार्ध में, महाभारतकाल में देवाधिदेव महेशजी और देवी महेश्वरी (पार्वती) के वरदान से माहेश्वरी वंश (माहेश्वरी समाज) की उत्पत्ति हुई. इसे ठीक से समझे तो कलियुग के ठीक पहले माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है. मित्रों, कलियुग अनीति, अनाचार, अन्याय की प्रधानतावाला अर्थात अधर्म की प्रधानतावाला युग माना जाता है. चराचर जगत के निर्माणकर्ता, पालनहार और संहारकर्ता भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा घोर अनाचार और अनीतिवाले कलियुग में धर्म की हानि रोकने के लिए, अधर्म के कारन होनेवाले विश्व के विनाश को बचाने के लिये दैवीय अर्थात महा ईश्वरी (माहेश्वरी) वंश की उत्पत्ति की गई है; सदाचारी, न्यायपूर्ण, नीतिपूर्ण जीवन जीने का आदर्श लोगों के सामने रहे इसीलिए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति की गई है. लोगों के सामने एक आदर्श और धर्माधिष्ठित जीवनपद्धति को रखने के लिए माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है.

माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय भगवान महेशजी ने कहा था की- "तुम दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होंगे. द्यूत, मद्यपान और परस्त्रीगमन इन त्रिदोषों से मुक्त होंगे. जगत में धन-सम्पदा के धनि के रूप में तुम्हारी पहचान होगी. धनि और दानी के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी. श्रेष्ठ कहलावोगे" (*आगे चलकर श्रेष्ठ शब्द का अपभ्रंश होकर 'सेठ' कहा जाने लगा. अर्थात अधिक धन-सम्पदा के स्वामी होने के कारन नहीं बल्कि इन दिव्य गुणों को धारण करनेवाले होने के कारन माहेश्वरीयों को श्रेष्ठ/सेठ कहा जाता है). भगवान महेशजी का माहेश्वरी समाज को, माहेश्वरीयों को दिया गया यह वरदान और आदेश भी है की माहेश्वरी द्यूत अर्थात किसी भी तरह के जुआ/जुगार खेलने से, मद्यपान अर्थात किसी भी तरह के नशीले पदार्थ के सेवन से और परस्त्रीगमन से मुक्त रहेंगे, वे इन तीन दोषों (बुराइयों) में लिप्त नहीं होंगे. इसी के कारन 'माहेश्वरी' दिव्य गुणों को धारण करनेवाले कहलाते है, माहेश्वरी (महा+ईश्वरी) अर्थात दैवीय/दिव्य कहलाते है, श्रेष्ठ कहलाते है. कलियुग में माहेश्वरीयों को 'श्रेष्ठ' माना जाता है, श्रेष्ठ (सेठ) कहा जाता है (देखें- Maheshwari - Origin and brief History). आज के समय में ज्यादातर समाजबंधुओं को, युवाओं को, नई पीढ़ी को माहेश्वरी वंशोत्पत्ति कब हुई, कहाँ हुई, कैसे हुई, क्यों हुई, तब क्या क्या हुवा इसकी तथा माहेश्वरी समाज के इतिहास की समुचित जानकारी ही नहीं है; परिणामतः उन्हें हम माहेश्वरीयों की उत्पत्ति किस महान उद्द्येश्य से हुई है इसका बोध ही नहीं है. हमें लगता है की "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति एवं इतिहास" की जानकारी समाज के हरएक घटक तक पहुँचाने के लिए माहेश्वरी समाज के लिए कार्य करनेवाले संगठनों को कोई प्रचार अभियान चलाना चाहिए. सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समय समयपर इसको समाज के सामने रखा जाना चाहिए.

भगवान् महेशजी द्वारा हम माहेश्वरीयों को, माहेश्वरी समाज को सौपा गया यह एक बहुत ही गौरवपूर्ण दायित्व है. लेकिन आज हम हमारे इस गौरव को, हमारे दायित्व को, हमारी महत्ता को भूलते जा रहे है. आज स्थिति ऐसी बनती जा रही है की- एक ज़माने में आम लोगबाग माहेश्वरी समाज का, उनके जीवनपद्धति का आदर्श सामने रखकर, प्रेरणा लेकर अपने खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार-व्यवहार और जीवनपद्धति में बदलाव लाते थे. आम लोगबाग माहेश्वरीयों जैसे जीवन जीने की कोशिश करते थे लेकिन आज इसका उलटा होता दिखाई दे रहा है. हमें लगता है समाज को, समाज में के बुद्धिजीवियों को, प्रबुद्ध समाजबंधुओं को, समाज के सामाजिक नेतृत्व को, हम सबको इसपर जरूर सोचना चाहिए, गंभीरता से सोचना चाहिए. हम सभी को इस बात को सदैव याद रखना चाहिए की भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति किस उद्देश्य से हुई थी. क्या हम हमें मिले उस अद्वितीय गौरव को कायम रख पा रहे है? भगवान् महेशजी और देवी पार्वती द्वारा हमें मिले दायित्व को निभा रहे है? मित्रों, समाजबंधुओं, माताओ और बहनो, ध्यान रहे की "माहेश्वरी" सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक ब्रांड है; और समाज का हरएक व्यक्ति, हरएक माहेश्वरी इस ब्रांड का "ब्रांड एम्बेसडर" है.

माहेश्वरीयों के अच्छे "संस्कार" ही माहेश्वरीयों को महान बनाते है, जीवन में सर्वोच्च सफलता दिलाते है। अच्छे संस्कारों, अच्छे गुणों को धारण करनेवाले होने के कारन ही माहेश्वरीयों को श्रेष्ठ (सेठ) कहा जाता है। "माहेश्वरी" सिर्फ एक शब्द या नाम नहीं है बल्कि सदाचार का, सेवा का, उदारता का, ईमानदारी का, मेहनत का, विश्वसनीयता का एक प्रतिष्ठित "ब्रांड" है, सिम्बॉल है।




जानिए माहेश्वरी अखाड़ा के बारेमें... क्या है विरासत, मुख्य उद्देश्य और कार्य | Maheshwari Akhada | Mahesh Navami | Maheshwari Samaj

माहेश्वरी अखाड़ा (जिसका आधिकारिक नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" है) माहेश्वरी समुदाय का सर्वोच्च धार्मिक गुरुपीठ है, माहेश्वरी समाज की शीर्ष/सर्वोच्च धार्मिक-आध्यात्मिक प्रबंधन संस्था है. वैसे तो माहेश्वरी गुरुपीठ की परंपरा 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरातन है. जब इसा पूर्व 3133 में, ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश जी ने माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति/उत्पत्ति की थी, इसी दिन को माहेश्वरी समुदाय माहेश्वरी समाज के स्थापना दिवस के रूपमें तथा महेश नवमी के नाम से मनाता है. तब माहेश्वरी समुदाय के स्थापना के साथ साथ ही भगवान महेश जी ने माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करने का दायित्व 6 गुरुओं (ऋषियों) को सौपा था; इन्ही 6 गुरुओं द्वारा माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा की शुरुआत की गई थी लेकिन समय चक्र में यह माहेश्वरी गुरुपीठ परंपरा विघटित हो गई. वर्ष 2008 में माहेश्वरी समाज के इस सर्वोच्च गुरुपीठ को कानूनी एवं आधिकारिक तौर पर "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के नाम से पुनः स्थापित किया गया. आधिकारिक स्थापना के समय इसका नाम "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" दर्ज किया गया था, लेकिन यह "माहेश्वरी अखाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध है, लोकप्रिय है.

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माहेश्वरी अखाड़ा (दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा) के पीठाधिपति "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होते है. महेशाचार्य पद शंकराचार्य और पोप के समकक्ष है. केवल माहेश्वरी समाज के सर्वोच्च गुरुपीठ "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा" के अध्यक्ष (पीठाधिपति) ही "महेशाचार्य" की उपाधि से अलंकृत होने के अधिकारी है / आधिकारिक रूप से अधिकृत है. माहेश्वरी गुरुपीठ के प्रथम पीठाधिपति महर्षि पराशर थे इसलिए महर्षि पराशर "आदि महेशाचार्य" है. वर्तमान में योगी प्रेमसुखानंद माहेश्वरी "दिव्यशक्ति योगपीठ अखाड़ा (माहेश्वरी अखाड़ा)" के पीठाधिपति और महेशाचार्य हैं.

माहेश्वरी अखाड़े के विधान के अनुसार इस अखाड़े का मुख्य कार्य धर्म की, माहेश्वरी संस्कृति की रक्षा करना है. माहेश्वरी अखाड़े का मुख्य उद्देश्य माहेश्वरी समाज को संगठित करना, समृद्ध करना, सुदृढ़ करना है. समाज की संस्कृति, सांस्कृतिक पहचान बनाये रखना एवं सुव्यवस्थित प्रबंधन के माध्यम से समाज में एकता को बढ़ाना जिससे की समाज का सर्वांगीण विकास हो यह अखाड़े का प्रमुख उद्देश्य है. आवश्यक होने पर सांस्कृतिक, सामाजिक इत्यादि से सम्बन्धित कार्य भी अखाड़े के माध्यम से किये जाने का प्रावधान है. माहेश्वरी समाज, धर्म और राष्ट्र का गौरव बढ़ाने तथा इनके सर्वांगीण प्रगति और संरक्षण-संवर्धन के लिए कार्य करना माहेश्वरी अखाड़े का मुख्य उद्देश्य है.

For more info of Maheshwari Akhada please click this link > What is Maheshwari Akhada? Know About Maheshwari Akhada


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क्या है माहेश्वरी अखाड़ा? जानिए माहेश्वरी अखाड़े के बारेमें...

संक्षेप में कहें तो, माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के अनुसार माहेश्वरीयों/माहेश्वरी समाज को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करनेका दायित्व भगवान महेशजी ने ऋषि पराशर, सारस्वत, ग्वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः (6) ऋषियों को सौपा. कालांतर में इन गुरुओं ने महर्षि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है. इन सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रबंधन और मार्गदर्शन का कार्य सुचारू रूप से चले इसलिए एक 'गुरुपीठ' को स्थापन किया जिसे "माहेश्वरी गुरुपीठ" कहा जाता था. इस माहेश्वरी गुरुपीठ के इष्ट देव 'महेश परिवार' (भगवान महेश, पार्वती, गणेश आदि...) थे. सप्तगुरुओं ने माहेश्वरी समाज के प्रतिक-चिन्ह 'मोड़' (जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है) और ध्वज का सृजन किया (देखें Link > Maheshwari Religious Symbol – Mod). ध्वज को "दिव्य ध्वज" कहा गया. दिव्य ध्वज (केसरिया रंग के ध्वजा पर अंकित मोड़ का निशान) माहेश्वरी समाज की ध्वजा बनी (देखें Link > Maheshwari Flag). गुरुपीठ के पीठाधिपति “महेशाचार्य” की उपाधि से अलंकृत थे, इसलिए उन्हें "महेशाचार्य" कहा जाता था (देखें Link > आदि महेशाचार्य). "महेशाचार्य" यह माहेश्वरी समाज का सर्वोच्च गुरु पद माना जाता है. इस माहेश्वरी गुरुपीठ के माध्यम से समाजगुरु माहेश्वरी समाज को मार्गदर्शित करते थे. माना जाता है की वंशोत्पत्ति के बाद कुछ शतकों तक यह गुरुपीठ परंपरा चलती रही, लेकिन समय के प्रवाह में माहेश्वरी गुरुपीठ की यह परंपरा खंडित हो गई (इसी कारन से लगभग पिछले चार हजार वर्षों से माहेश्वरी समाज के गुरुपीठ के बारे में ना किसी ने कुछ सुना ना ही किसी को इसकी जानकारी है). यह माहेश्वरीयों का, माहेश्वरी समाज का दुर्भाग्य है की जाने-अनजाने में माहेश्वरी समाज अपने गुरुपीठ और गुरूओंको भूलते चले गए. परिणामतः समाज को उचित मार्गदर्शन करनेवाली व्यवस्था ही समाप्त हो गई जिससे समाज की बड़ी हानि हुई है और आज भी हो रही है. माहेश्वरी समाजजनों को समाजहित में इस बात को गंभीरता से समझते हुए सही और उचित दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए.

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भारतीय नववर्ष, गुड़ी पाड़वा 2018 की हार्दिक शुभकामनाएं !


18 मार्च 2018 से चैत्र नवरात्रि के शुरु होते ही भारतीय नववर्ष की भी शुरुआत हो गई है. "चैत्र शुक्ल १" इस दिन को सनातन धर्म को माननेवाले लोग "गुढ़ी पाड़वा" (कहीं कहीं पर इसे 'गुड़ी पड़वा' भी कहा जाता है) के नाम से भारतीय नववर्षारंभ अर्थात नए वर्ष के आरम्भ के रूपमें बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. गुढ़ी का मतलब होता है विजय, गुढ़ी विजय की प्रतिक है और पाड़वा का मतलब होता है चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का पहला दिन. सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार नवरात्रि या गुढ़ी पाड़वा के दिन कोई भी शुभ कार्य बिना किसी संकोच के प्रारम्भ किया जा सकता है. किसी भी शुभकार्य के लिए अथवा नए कार्य की शुरुवात करने के लिए गुढ़ी पाड़वा को सबसे शुभ, सबसे अच्छा दिन माना जाता है.

यह भारतीय नववर्ष आपके परिवार में खुशहाली और समृद्धि बढ़ानेवाला रहे. आप सभी को भारतीय नववर्ष, गुढ़ी पाड़वा 2018 (युधिष्ठिर सम्वत 5160) की हार्दिक शुभकामनाएं !

May this Bharatiy New Year brings in Happiness and prosperity in your family. Happy Gudi Padwa 2018 !

पान क्यों सड़ा? घोडा क्यों अड़ा? रोटी क्यों जली? माहेश्वरी समाज की प्रगति क्यों रुकी?


मित्रों, कुछ दिनों पहले माहेश्वरी अखाड़े के पीठाधिपति योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी से हुई बातचीत में उन्होंने ये पंक्तियाँ कहते हुए, इसका कारन बताते हुए कहा की- पान इसलिए सड़ गया क्योंकि उसे बदला नहीं गया और घोडा इसलिए अड़ा क्योंकि उसपर लगाम नहीं लगायी गयी, रोटी इसलिए जल गयी क्योंकि उसे पलटा नहीं गया... उर्दू शायर, ग़ालिब और खुसरो द्वारा कही इन पंक्तियों में आगे एक और कड़ी को जोड़ते हुए उन्होंने कहा की- माहेश्वरी समाज की प्रगति क्यों रुकी? क्यों माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान ख़त्म होती जा रही है? क्योंकि, बीते 100 वर्षों से समाज के नेतृत्व को बदला नहीं गया. 100 वर्षों से निरंतर एक ही संस्था द्वारा माहेश्वरी समाज का नेतृत्व किया जा रहा है इसके कारन ! कितना प्रासंगिक है उनका ये कहना, आइये समझते है...

राष्ट्र हो या कोई समाज या संप्रदाय, पांच दस वर्षों के बाद, नेतृत्व को पलटना चाहिए, सरकारे बदलनी चाहिए और उनपे लगाम लगायी जानी चाहिए... नहीं तो वे बेकार, निष्क्रिय हो जाएंगी तथा उन्हें सत्ता का, अहंकार का नशा हो जायेगा. इसलिए समय समयपर नेतृत्व में परिवर्तन होना आवश्यक है. कोई राष्ट्र हो या कोई समाज ये उनके हित में बहुत लाभकारी है की हर पांच दस वर्षो में नेतृत्व हस्तानांतरित होता रहे. नेतृत्व में परिवर्तन होता रहे यही प्रगति का मूलमंत्र है, यही समाज के हित में है.

हम माहेश्वरी समाज की ही बात करें तो बीते 100 वर्षों से भी ज्यादा समय से माहेश्वरी समाज का नेतृत्व 'माहेश्वरी महासभा' यह संगठन कर रहा है. जैसा की ऊपर कहा गया है की "हर पांच दस वर्षों में नेतृत्व बदलना चाहिए, नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए... नहीं तो वे बेकार, निष्क्रिय हो जाते है तथा उन्हें सत्ता का, अहंकार का नशा हो जाता है, नेतृत्व करते हुए आम लोगों के लिए उनकी जो जिम्मेदारियां होती है वे उसे भूल जाते है, आम लोगों से उनका जुड़ाव और संपर्क समाप्त हो जाता है" बिलकुल यही स्थिति माहेश्वरी महासभा की हो गई है. आज वास्तविक स्थिति यह है की- माहेश्वरी महासभा यह संगठन समस्त माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करता है यह बात किसी तत्थ्य, प्रमाण, तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है. साबित हो गया है की माहेश्वरी महासभा द्वारा माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करने का सिर्फ दिखावा किया जा रहा है. इस दिखावे के नेतृत्व के चलते समाज में एक अराजक जैसी स्थिति बन गई है, समाज में कोई किसी की नहीं सुन रहा है, प्रगति रुक गई है, समाज हरएक क्षेत्र में पिछड़ गया है. समाज शक्तिहीन हो गया है. माहेश्वरी महासभा के कई जिला-तहसील स्तर के पदाधिकारियों ने व्यक्तिगत बातचीत में इसे माना है की वे भले ही खुद को जिले या तहसील के माहेश्वरी समाज का नेता कहते है लेकिन उनकी कही बात को पूरा समाज तो क्या एक-चौथाई समाज भी नहीं मानता है, नहीं मानेगा. इसे ही अराजक वाली स्थिति कहते है. ऐसी स्थिति में किसी भी समाज में ना एकता बन पाती है ना वह समाज प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है. उसकी प्रगति रुक जाती है, गौरव समाप्त हो जाता है. आज माहेश्वरी महासभा के नेतृत्व में, पुरे देशभर के माहेश्वरी समाज में लगभग ऐसी ही स्थिति है इसे कौन नकार सकता है. सोचो यदि हमारे देश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं होता तो कैसे कांग्रेस जाती और कैसे देश को मोदी जैसा सक्रीय, दूरदर्शी नेतृत्व मिलता जो दुनियाभर में देश के गौरव को पुनर्स्थापित कर रहा है, जिसने देश के गौरव को बढ़ाया है, प्रगति को रफ़्तार दी है, जिसके नेतृत्व में देशवासियों के मन में अपने देश के लिए स्वाभिमान जगा है. इसलिए समाजजनों को, समाज के लोगों को ये ध्यान रखना चाहिए की समय समयपर, हर पांच दस वर्षो में नेतृत्व हस्तानांतरित होता रहे, नेतृत्व में परिवर्तन होता रहे यही प्रगति का मूलमंत्र है, यही समाज के हित में है.

समाज के लिए अपना समस्त जीवन समर्पित कर देनेवाले योगी प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी महाराज के मार्गदर्शन में समाज को वास्तविक नेतृत्व देने के लिए एक पहल हुई. समाज के लिए, नेतृत्व के लिए एक सुव्यवस्थित और सर्वसमावेशक व्यवस्था (सिस्टम) को प्रस्तुत करते हुए महासंघ कार्यरत हुवा, सक्रीय हुवा. "माहेश्वरी महासंघ" की सक्रियता के कारन बीते कुछ दिनों में समाज के नेतृत्व को लेकर, संगठनों के कामों को लेकर समस्त माहेश्वरी समाज में जोरशोर से चर्चाएं की जा रही है. सोशल मिडिया के माध्यम से शुरू हुई यह चर्चा आज समाजबंधुओं के ड्रॉइंगरूम में, इतनाही नहीं जहाँ समाज के चार लोग इकठ्ठा हो जाते है वहां पर भी, समाज के समारोहों में भी होती दिखाई दे रही है. इससे माहेश्वरी महासभा में भी उथल-पुथल मची हुई है.

बीते 100 सालों से समाज का जो नेतृत्व महासभा के हाथों में है कही वह हाथ से निकल न जाये इसके लिए महासभा भीतर ही भीतर सक्रीय हुई है. समाज से उठे सवालों पर महासभा सार्वजनिक रूप से कोई आधिकारिक उत्तर तो नहीं दे पा रही है लेकिन अपने संगठन के पदाधिकारियों के नेटवर्क के माध्यम से समाज में बेबुनियाद अफवाहें, और समाज को कन्फ्यूज करनेवाली बातें फ़ैलाने का सिलसिला महासभा ने शुरू कर दिया है. महासभा द्वारा कही जा रही बातों में समाज को यह डर बताया जा रहा है की महासभा का नेतृत्व नहीं रहेगा तो समाज एकदम से नेतृत्वहीन हो जायेगा, फिर समाज का क्या होगा? इसपर हम कहना चाहते है की एक सामान्य भौतिकी नियम है की खालीपन या रिक्तता कभी भी नहीं रहती है, निश्चित रूप से समाज इतना सक्षम और समझदार है की बहुत कम समय में समाज के लिए सक्षम नेतृत्व का निर्माण समाज स्वयं कर लेगा, माहेश्वरी महासंघ ने समस्त माहेश्वरी समाज के नेतृत्व के लिए समाज के सामने खुद को एक सक्षम विकल्प/पर्याय के रूप में रखा भी है. महासभा समाज को नेतृत्वहीनता होने का डर दिखाकर डराए नहीं. बल्कि इसके बजाय महासभा उनके अपने नेतृत्व को महासंघ से बेहतर सिद्ध करने के लिए समाज के सामने (देशभर में) महासभा और महासंघ को अपनी अपनी बात रखने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करें. समाज महासभा और महासंघ दोनों की ही बात को सुनेगा और फैसला करेगा की समाज का नेतृत्व करने के लिए बेहतर कौन है, 'महासभा या महासंघ' किसके नेतृत्व में समाज प्रगति कर सकता है, किसके नेतृत्व में समाज का गौरव बढ़ेगा. महासभा ऐसे चर्चात्मक कार्यक्रमों को आयोजित करें और फिर समाज तय करें की क्या करना है. हालाँकि महासभा की नाकामयाबी खुलने के डर से, महासभा ने फुलाया हुवा भ्रम का गुब्बारा फूटने के डर से महासभा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करेगी इसकी संभावना कम ही है. समाज के सामने दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये इसलिए महासभा को (महासभा को इसलिए चूँकि वह आज/वर्तमान समय में समस्त माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करने का दावा करती है) महासभा और महासंघ की आमने सामने की चर्चा के कार्यक्रम आयोजित करने की पहल करनी चाहिए; लेकिन इसकी संभावना कम ही है की महासभा ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें. हरएक शहर में स्वतंत्ररूप से कार्य करनेवाले स्थानीय माहेश्वरी संघठन भी है लेकिन महासभा के दबाव के कारन उनसे भी यह संभावना कम है की वे ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे. समाज के लिए समर्पित (किसी एक संगठन के लिए नहीं) एक समाचारपत्रिका होने के नाते हमें लगता है की महासभा और महासंघ इन दोनों को समाज के सामने अपनी अपनी बातें, अपनी अपनी भूमिका रखने का मौका मिलना चाहिए. जो गलत होगा समाज उसे नकार देगा, जो सही होगा समाज उसको समाज का नेतृत्व देगा; यही समाज के हित में है; बाकी समाज ना सिर्फ सब कुछ करने में समर्थ है, सक्षम है बल्कि सर्वोपरि भी है.

जय महेश !

Masik Divy Maheshwari Logo


बुरा ना मानो होली है


महासभा तो बस कुछ लोगों की टोली है
बुरा ना मानो होली है


नए नए, भांति भांति के ट्रस्ट बनाकर
भर रही अपनी झोली है
महासभा बस कुछ लोगों की टोली है
बुरा ना मानो होली है

अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे

युवाओं ने समाजबंधुओं ने जोर लगाया
समाज में एक नई चेतना जगाई है
अनजान बन बैठी है माहेश्वरी महासभा
जाग भी रही है या सो गई है


उम्मीद बनकर आया महासंघ
जैसे समाज का भाजपा
माहेश्वरी समाज की कॉंग्रेस पार्टी
बन गई है महासभा


सोशल मिडिया में तो
महासंघ जबरदस्त है
लेकिन महासभा की
चालों के आगे पस्त है


प्रेमसुखानन्द माहेश्वरी
सोशल मिडिया पर तो छाये हुए है
बाकि है अभी मुँह दिखाई
क्यों अमावस के चाँद बने हुए है


महामंत्री संदीप काबरा व्यस्त बड़े रहते है
हर दिन ढूंढ ढूंढ, देते है शुभकामनाएं...
कहीं भूल तो नहीं गए अपना असली काम
तो फिर क्यों ये समाज के काम ना आये


सोमनाथ की धरतीपर खूब बोली
जोर से बोली माहेश्वरी महासभा
प्री-वेडिंग फोटोशूट के बंदिश पर
अब बोलेंगे,
तब बोलेंगे, सोचते रहे लोग
लेकिन चुप्पी साध ली महासभा ने
समाज के असली मसलों पर


होली है भाई होली है
बुरा ना मानो होली है