'माहेश्वरी महासभा' अर्थात अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा (ABMM), माना जाता है की राष्ट्रिय स्तर पर यह संस्था माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करती है. राष्ट्रिय स्तर पर कार्यरत माहेश्वरी समाज की एकमात्र संस्था (संगठन) होने के नाते महासभा का दायित्व (जिम्मेदारी) था/है की यह संस्था माहेश्वरी समाज की संस्कृति को, समाज की विशिष्ट पहचान को, समाज के गौरव को बचाने, कायम रखने और बढ़ाने के लिए कार्य करें लेकिन कभी दिखाई नहीं दिया की महासभा इसके लिये गंभीर है अथवा कोई कार्य कर भी रही है. पता नहीं की महासभा को इस बात का पता भी है या नहीं की समाज का नेतृत्व करनेवाली एकमात्र संस्था होने के नाते यह उनका कार्य है, यह उनकी जिम्मेदारी है. खैर इतना क्या कम था जो अब माहेश्वरी महासभा समाज की पहचान को, समाज की संस्कृति को ही मिटाने के काम में लग गई गई. ये तो ऐसा ही है की जिस कम्पाउंड को खेती की रक्षा करने के लिये लगाया गया था वो कम्पाउंड ही खेती को खाये जा रहा है, खाने जा रहा है. पिछले कुछ समय में माहेश्वरी महासभा ने कुछ ऐसी बातें की है जिससे ऐसा लग रहा है की पांच हजार वर्षों से चली आ रही महान माहेश्वरी संस्कृति के अस्तित्व को, समाज की विशिष्ट पहचान को कहीं माहेश्वरी महासभा ख़त्म तो नहीं करना चाहती है, और लग यह रहा है की यह इतने सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है की आम समाजबंधुओं को इसकी खबर तक नहीं लग रही है. माहेश्वरी महासभा की एक ऐसी ही करतूत को समाज के सामने, समाज की अदालत में रखते हुए हमने यह प्रश्न उठाया है की "क्या समाज की पहचान को मिटा रही है माहेश्वरी महासभा?" हम जो कर सकते है, हमने किया, हम मामला समाज की अदालत में ले आये अब फैसला आम समाजबंधुओं को करना है.
इस पोस्ट के साथ आपको जो फोटो दिखाई दे रहा है, यह फोटो माहेश्वरी महासभा के राष्ट्रिय कार्यकारिणी में संयुक्त मंत्री और माहेश्वरी महासभा के राष्ट्रिय महामंत्री के कार्यालय प्रमुख श्रीमान जुगल किशोरजी सोमानी के फेसबुक अकाउंट की प्रोफ़ाइल फोटो है (देखे- Shriman Jugal kishorji Somani at Facebook). इस फोटो पर 'कमल के फूल पर शिवलिंग' का सिम्बॉल और उसके ठीक बाजु में 'माहेश्वरी' नाम लिखा हुवा है (एक app है जिसके द्वारा अपने अपने प्रोफ़ाइल फोटो पर ऐसा 'कमल के फूल पर शिवलिंग' का सिम्बॉल और उसके ठीक बाजु में 'माहेश्वरी' नाम वाला फेसबुक प्रोफ़ाइल फोटो बनता है). एक नजर में इस फोटो को देखने पर इसमें कोई गलत बात नजर नहीं आती है लेकिन जिन्हे माहेश्वरी समाज के वंशोत्पत्ति की, समाज के इतिहास की और माहेश्वरी महासभा के इतिहास की जानकारी है उन्हें यह साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा है की अपनेआप को प्रचारित करने के लिए माहेश्वरी महासभा कैसे समाज को निचा दिखा रहा है, कैसे समाजबंधुओं को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. माहेश्वरी समाज का सबसे बड़ा और राष्ट्रिय स्तर का एकमात्र संगठन होने के नाते जिसपर समाज की संस्कृति को, समाज की पहचान को, समाज के गौरव को, समाज के गौरवचिन्हों को बचाने-कायम रखने की जिम्मेदारी है वही माहेश्वरी महासभा कैसे समाज की संस्कृति को, समाज के गौरवचिन्हों को ख़त्म करने जैसी ओछी हरकतों पर उतर आयी है. अनेको समाजबंधुओं ने, यहाँ तक की समाज की संस्कृति, समाज के गौरव और समाज के लिए समर्पित ऐसे कुछ समाजबंधुओं ने जो की माहेश्वरी महासभा के प्रदेश और राष्ट्रिय स्तर के पदाधिकारी भी है, महासभा की इस बात को गलत बताया है. अनेको समाजबंधुओं ने माहेश्वरी महासभा के इस हरकत पर तीखी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की है.
भाइयों और बहनों, सजगता के साथ, गौर से इस फोटो को देखें तो ध्यान में आता है की इस app के द्वारा बड़ी चालाकी के साथ "माहेश्वरी" नाम के साथ समाज का सिम्बॉल (symbol of community) "मोड़" का फोटो (मोड़, जिसमे की एक त्रिशूल और त्रिशूल के बिच के पाते में ॐ होता है) नहीं बल्कि 'माहेश्वरी महासभा' इस संस्था (संगठन) के सिम्बॉल का फोटो दिखाया गया है. बड़ी चालाकी के साथ समाजजनों को यह बताने की और प्रचारित करने की कोशिश की गई है की 'कमल के फूल पर शिवलिंग' वाला यह सिम्बॉल 'माहेश्वरी समाज' का सिम्बॉल है जबकि वास्तविकता यह है की 'कमल के फूल पर शिवलिंग' वाला यह सिम्बॉल माहेश्वरी समाज का नहीं बल्कि 'माहेश्वरी महासभा' इस संस्था का सिम्बॉल है. माहेश्वरी महासभा इस संस्था/संगठन का सिम्बॉल इस संस्था के सौ साल के इतिहास में अबतक तीन बार बदला जा चूका है; वर्तमान समय में माहेश्वरी महासभा का 'कमल के फूल पर शिवपिंड' वाला जो सिम्बॉल है वो आज से छब्बीस वर्ष पूर्व बनाया गया था (यह सिम्बॉल पैठण, महाराष्ट्र के एकनाथजी मूंदड़ा ने बनाया था जिसे महासभा के राष्ट्रिय अधिवेशन में माहेश्वरी महासभा के सिम्बॉल के रूप में स्वीकृत किया गया था. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार तो महासभा के अंदर इस वर्तमान 'कमल के फूल पर शिवलिंग' वाले सिम्बॉल को भी बदलने की मांग उठी है, पता नहीं महासभा कब इस सिम्बॉल को बदलकर फिर कोई नया सिम्बॉल अपना ले, कोई नया सिम्बॉल बना लें). माहेश्वरी समाज का सिम्बॉल 'मोड़' है जो की माहेश्वरी वंशोत्पत्ति के समय भगवान महेशजी द्वारा बनाये गए माहेश्वरी गुरुओं के द्वारा बनाया गया था. कायदे से होना तो यह चाहिए की, यदि सिर्फ 'माहेश्वरी' नाम लिखा जा रहा है तो उसके साथ माहेश्वरी समाज के सिम्बॉल 'मोड़' का फोटो होना चाहिए और माहेश्वरी महासभा को अपने सिम्बॉल का ही प्रचार करना है तो 'कमल के फूल पर शिवलिंग' वाले सिम्बॉल के साथ यह सिम्बॉल जिस संस्था का है उस संस्था 'माहेश्वरी महासभा' का नाम होना चाहिए. किसी संस्था या संगठन का सिम्बॉल दिखाया जा रहा है तो उस सिम्बॉल के साथ उस संस्था/संगठन का नाम होना चाहिए. अपनी संस्था के सिम्बॉल के साथ अपनी संस्था (माहेश्वरी महासभा) का नाम लिखने के बजाय सिर्फ "माहेश्वरी" लिखना इसमें कोई भेद, कोई रहस्य, कोई चालाकी होने का शक जरूर पैदा होता है (ऐसी ही एक चालाकी माहेश्वरी महासभा द्वारा हमेशा की जाती है. जब माहेश्वरी महासभा के अध्यक्ष, सचिव आदि पदाधिकारी चुने जाते है और उनके चुने जाने का समाचार स्थानीय समाचारपत्रों में और समाज के लिये निकलनेवाली पत्रिकाओं में दिया जाता है तो वहां 'अमुक-अमुक शहर के माहेश्वरी महासभा के अध्यक्ष बने तमुक-तमुक' ऐसा समाचार दिया जाने के बजाय समाचार दिया जाता है की 'अमुक-अमुक शहर के माहेश्वरी समाज के अध्यक्ष बने तमुक-तमुक', जबकि 95% समाजबंधुओं का इस चुनाव में कोई रोल, कोई भूमिका ही नहीं होती है, उन्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं होता है). माहेश्वरी महासभा को चाहिए की समाज के लिए अपने भरपूर योगदान से, अपने कामों से समाज में अपनी पहचान बनायें ना की इस तरह छुपे तरीके से अपनी संस्था के सिम्बॉल को समाज का सिम्बॉल बताकर.
माहेश्वरी महासभा द्वारा उनकी अपनी संस्था के सिम्बॉल को माहेश्वरी समाज का सिम्बॉल बताना क्या गलत है? इसमें समाज का क्या नुकसान है?
कुछ समाजबंधुओं के मन में यह उपरोक्त प्रश्न आ सकते है, यह उन समाजबंधुओं के मन की सरलता है की उन्हें ऐसा लगे की इसमें क्या गलत है, इसमें समाज का क्या नुकसान है? मन की सरलता के कारन ऐसा लग सकता है लेकिन ऐसा है नहीं, यह बात उतनी सरल या छोटी है नहीं की इसे एक छोटी या एक साधारण बात समझी जाये. भाइयों और बहनो, एक समाज का मतलब होता है एक संस्कृति. समाज की संस्कृति और समाज के मूल सिद्धांत होते है समाज की पहचान, और समाज की पहचान पर आधारित होता है समाज का अस्तित्व. इसलिए यदि समाज की पहचान को, समाज के अस्तित्व को, समाज के गौरव को कायम रखना हो तो यह जरुरी है हम समाज की संस्कृति को, समाज के मूल सिद्धांतों को भूले नहीं. जो समाज अपनी संस्कृति को, अपने गौरवचिन्हों को, अपने इतिहास को भूल जाता है, अपनी इन जड़ों से कट जाता है उस समाज के अस्तित्व को, विशिष्ट पहचान को, गौरव को कोई नहीं बचा सकता. प्रोटोकॉल का भी अपना एक महत्व होता है. जैसे की, भारत की राजमुद्रा के साथ आप 'कांग्रेस' या 'भाजपा' नहीं लिख सकते क्यों की वह कांग्रेस या भाजपा का सिम्बॉल नहीं बल्कि राष्ट्र की राजमुद्रा है; यह प्रोटोकॉल होता है. इसी तरह से समाज और सस्था/संगठन से संदर्भित प्रोटोकॉल भी निभाए जाने चाहिए जिससे की समाज का गौरव, समाज की पहचान कायम रहें.
एक तो माहेश्वरी महासभा ने बरसों बरस तक माहेश्वरी समाज के इतिहास को, समाज के मूल सिद्धांतों को, मूल गौरवचिन्ह 'मोड़' और समाज के ध्वज 'दिव्यध्वज' को अनदेखा किया और सिर्फ अपनी संस्था के सिंबॉल (कमल के फूल पर शिवलिंग' वाले सिम्बॉल) का ही प्रचार किया. समाज के मूल गौरवचिन्ह तो लगभग विस्मृत हो चले थे. ये तो भला हो सोशल मिडिया का की कुछ बुजुर्ग समाजबंधु सोशल मिडिया के माध्यम से इन्हे पुनः समाज के सामने ले आये. आम माहेश्वरी समाजबंधुओं में 'समाज के मूल सिम्बॉल- मोड़' का प्रयोग बढ़ता देखकर शायद माहेश्वरी महासभा के अहंकार को चोट पहुंची और उन्होंने माहेश्वरी महासभा के सिम्बॉल का जोर-शोर से प्रचार करने के लिए यह app बनाया है. अब तो लग रहा है की कहीं अगले चार दिन में माहेश्वरी महासभा केसरिया ध्वज पर अपने संस्था का 'कमल के फूल पर शिवलिंग' वाला निशान प्रिंट करवाकर उसे माहेश्वरी समाज का ध्वज ना बताने लगे और अगले सप्ताह यह ना कहने लगे की माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति महेश नवमी को नहीं बल्कि एकसौ दस वर्ष पहले उस दिन हुई थी जिस दिन 'माहेश्वरी महासभा' की स्थापना हुई थी. ऐसी ओछी हरकतों से समाज गुमराह होने से तो रहा बल्कि माहेश्वरी महासभा अपना खुद का मजाक बना रहा है.
माहेश्वरी महासभा हो या समाज के लिए कार्य करनेवाला कोई अन्य संगठन हो, वे अपने संगठन के सिम्बॉल का प्रचार जरूर कर सकते है, इसमें हमें या किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है, ना होनी चाहिए लेकिन उसका तरीका सही हो, अपनी संस्था का सिम्बॉल है तो उसे अपनी संस्था का सिम्बॉल बताकर ही उसका प्रचार किया जाये. इस मामले में जिस तरह माहेश्वरी महासभा अपनी संस्था के पहचान को कायम रखने के लिए, अपनी संस्था को महिमामंडित करने के लिए समाज की संस्कृति को उखाड़ रही है, समाज की जड़ों को खोद रही है यह ना सिर्फ गलत है बल्कि यह समाज के साथ द्रोह है, समाजद्रोह है. यह समाज के सरल मन वाले समाजबंधुओं की सरलता का बेजा फायदा उठाकर उन्हें धोका देना है. इससे अच्छा तो यह होता की माहेश्वरी महासभा समाज के लिए अपने कार्य को, अपनी सेवा को बढाती जिससे की पुरे समाज में उनका नाम बढ़ें, सम्मान बढ़ें.
स्थानिक स्तर पर अर्थात शहर, तहसील, जिला स्तर पर अनेक माहेश्वरी संगठन स्वतंत्र रूप से समाज के लिए कार्यरत है लेकिन अखिल भारतीय स्तर का समाज का एकमात्र संगठन होने के कारन 'माहेश्वरी महासभा' राष्ट्रिय स्तर पर समाज का नेतृत्व करती है ऐसा माना जाता है (माहेश्वरी महासभा 'समाज नहीं है बल्कि समाज के लिए कार्य करनेवाला 'संगठन' है. संगठन नहीं बल्कि समाज सर्वोपरि होता है, समाज में से संगठन निकलते है, संगठन में से समाज नहीं). पिछले सौ वर्षों से राष्ट्रिय स्तर पर समाज का एकमुखी, एकछत्र नेतृत्व करते हुए माहेश्वरी महासभा समाज की संस्कृति को कायम रखने में, समाज को 'समाज के मूल सिद्धांतों' पर चलने की प्रेरणा देने में साफ़ नाकाम रही है, समाज के लिए कोई लक्षणीय कार्य भी नहीं कर पाई है फिर भी कोई और पर्याय ना होने के कारन समाज ने माहेश्वरी महासभा को समाज के नेतृत्व के रूप में एक मौन स्वीकृति दी हुई है, लेकिन इसका मतलब माहेश्वरी महासभा यह कतई ना समझे की समाज उनके खूटें से बंधी हुई बकरी है. लाख कमियों के बावजूद भी माहेश्वरी महासभा की जो कुछ हैसियत है समाज के कारन है, समाज के नाम के कारन है. माहेश्वरी महासभा खुद को समाज से बड़ा दिखाने की बेवकूफाना कोशिश ना करें, कहीं ऐसा ना हो की समाज उनकी तरफ पीठ कर दें.
माहेश्वरी महासभा के पदाधिकारी और कार्यकर्ता सबसे पहले समाज के घटक है और उसके बाद संगठन के कार्यकर्ता या पदाधिकारी, इसलिए हम चाहते है की वे इस बात को जरूर सोचे की आप लोग समाज की सेवा करने के लिए संगठन में हो या समाज पर शासन करने के लिए? आपकी निष्ठां, आपका दायित्व सबसे पहले समाज के लिए है या अपने संगठन के लिए? समाज की संस्कृति पर, समाज की पहचान पर कोई चोट करें, उसे मिटाने की कोशिश करें (फिर वह संगठन क्यों ना हो जिसके आप पदाधिकारी या कार्यकर्ता हो) तो इस बात को रोकना, इसका विरोध करना आपका कर्तव्य, आपका दायित्व बनता है या नहीं? आपमें गलत और सही को समझने की समझ है या नहीं? गलत को 'गलत' और सही को 'सही' कहने का साहस और मन की प्रामाणिकता आपके पास है या नहीं?
सामाजिक कार्य करने के लिए, समाजसेवा करने के लिए, समाज की संस्कृति को, समाज के गौरव को, समाज की पहचान को बचाने-कायम रखने के लिए संगठन का सदस्य या पदाधिकारी बनना जरुरी नहीं होता है, आम समाजबंधु भी इस कार्य में अपना योगदान दे सकते है बल्कि समाज सेवा के 5 मूल मंत्र के द्वारा आम समाजबंधु ही इस कार्य में सही योगदान दे सकते है.
समाजसेवा के वह 5 मूल मंत्र है-
(1) समाज के लिए लड़ाई लड़ो.
(2) लड़ नही सकते तो लिखो.
(3) लिख नही सकते तो बोलो.
(4) बोल नहीं सकते तो साथ दो.
(5) साथ भी नहीं दे सकते तो जो लिख और बोल रहे हैं ,जो लड़ रहे हैं, किसी न किसी तरीके से उनका अधिक से अधिक सहयोग करो. संघर्ष के लिए ताकत दों.