देश के सिम्बॉल अशोकचक्रवाले तिरंगे और भाजपा का सिम्बॉल कमल के फूल में जितना फर्क है उतना ही फर्क है माहेश्वरी समाज के सिम्बॉल "मोड़' और महासभा के सिम्बॉल कमल के फूल पर शिवलिंगवाले सिम्बॉल में.
जैसे तिरंगा हरएक भारतीय की, भारत देश की पहचान है और कमल का फूल यह सिम्बॉल भारतीय जनता पार्टी का सिम्बॉल है, जो वर्तमान समय में सत्ताधारी पार्टी है तथा देश का नेतृत्व कर रही है; वैसे ही 'मोड़' (एक त्रिशूल जिसके बिच के पाते में एक वृत्त और वृत्त के मध्य में ॐ होता है) हरएक माहेश्वरी की, माहेश्वरी समाज की पहचान है और कमल के फूल पर शिवलिंगवाला सिम्बॉल 'माहेश्वरी महासभा' इस संगठन का सिम्बॉल है, जो वर्तमान समय में माहेश्वरी समाज का नेतृत्व कर रहा है.
मोड़ (एक त्रिशूल जिसके बिच के पाते में एक वृत्त और वृत्त के मध्य में ॐ होता है), यह सिम्बॉल माहेश्वरी समाज का, माहेश्वरी संस्कृति का प्रतीकचिन्ह (सिम्बॉल) है, गौरवचिन्ह है. समाज का नेतृत्व करनेवाले संगठन का यह पहला कार्य होता है की समाज के संस्कृति का, समाज की विशिष्ठ पहचान का, समाज के प्रतीकों का, गौरवचिन्हों का संरक्षण-संवर्धन करें... लेकिन पता नहीं माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करनेवाला संगठन 'माहेश्वरी महासभा' क्यों समाज के प्रतीकचिन्ह 'मोड़' की उपेक्षा करता है, उसे अनदेखा करता है. अबतक जो हुवा सो हुवा लेकिन अब महासभा को माहेश्वरी समाज के प्रतीकचिन्ह 'मोड़' का पुरे सम्मान और प्रोटोकॉल के अनुसार प्रयोग करना चाहिए.
संगठन में तो कुल समाज के कुछ दस-बीस प्रतिशत लोग सदस्य बनते है, संगठन का सिम्बॉल उन संगठन के सदस्यों की, संगठन की पहचान होता है लेकिन समाज का प्रतीकचिन्ह (सिम्बॉल) समस्त समाज की, समाज के हरएक व्यक्ति की पहचान होता है. समाज का प्रतीकचिन्ह समस्त समाज को एकता के अटूट बंधन में बांधे रखने का कार्य करता है इसलिए यह जरुरी है की समाज के प्रतीकचिन्ह का यथोचित एवं ससम्मान प्रयोग किया जाये. आम माहेश्वरी लोग अपनी अपनी क्षमता के अनुसार, उन्हें जो मंच मिले, जो माध्यम मिले उसका प्रयोग करके माहेश्वरी समाज के मूल प्रतीकचिन्ह की पहचान को, समाज की इस विशिष्ठ पहचान को कायम रखने का प्रयास कर रहे है, इसके लिए इनका जितना अभिनन्दन किया जाये, धन्यवाद किया जाये... कम ही है; लेकिन ना जाने क्यों समाज का नेतृत्व करनेवाला संगठन 'माहेश्वरी महासभा' अपने संगठन के सिम्बॉल को ही समाज का सिम्बॉल सिद्ध करने की गलत कोशिश करता रहा है, कर रहा है. महासभा को समझना चाहिए की उनकी यह कोशिश कभी भी सफल तो हो ही नहीं सकती क्योंकि कहीं ना कही, कोई ना कोई अपने समाज के इस गौरवचिन्ह "मोड़" के सम्मान की लड़ाई लड़ता रहेगा. समाज का जो गौरवचिन्ह पिछले 5000 वर्षों में भुलाया नहीं जा सका, क्या आगे उसे भुलाया जाना संभव है? अ. भा. माहेश्वरी महासभा यह संगठन खुद को समाज से ऊपर समझने लगा है यह धारणा आम माहेश्वरीयों मन में घर कर जाये और आम माहेश्वरी लोग महासभा से दुरी बना लें इससे पहले महासभा अतीत में हुई अपनी भूलों को सुधार लें यह महासभा के भी हित में है और समाज के भी हित में है.
जैसे कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि देश सर्वोपरि होता है वैसे ही समाज के लिए कार्य करनेवाला कोई भी संगठन नहीं बल्कि समाज सर्वोपरि होता है. सिर्फ अपने संगठन को ही समाज समझने की जो भूल जाने-अनजाने में अबतक महासभा से हुई है, लेकिन अब आशा करते है की महासभा अपनी भूल को दुरुस्त करके सही मायने में समस्त माहेश्वरी समाज का नेतृत्व करने की और अग्रेसर होगी. महासभा खुद को समाज पर शासन करनेवाला संगठन नहीं समझें बल्कि समाजसेवक बनकर समाज की सेवा करनेवाला संगठन बने यह ना सिर्फ समाज के बल्कि महासभा के भी हित में होगा. समाज और समाज का नेतृत्व करनेवाला संगठन, इन दोनों के बिच के फर्क को समझे महासभा. इस बात के सार को समाज को, समाजजनों को भी समझना चाहिए. समाज के लोगों को यह बात समझ में नहीं आना ऐसा है जैसे देश के सिम्बॉल अशोकचक्रवाले तिरंगे और भाजपा का सिम्बॉल कमल के फूल में क्या फर्क है यह समझ में नहीं आना.
समाज का सिम्बॉल और संगठन का सिम्बॉल इन दोनों के बिच के फर्क को अधिक विस्तार से समझने के लिए कृपया इस link पर click कीजिये >